Sunday, March 6, 2016

ॐ भस्मोद्धूलित विग्रहाय नम:

गोबर बहुत सारे कीडेमकोडौंसे भरी होती हैं और बद्बू फैलाती रहती हैं। और जो कोई उसे छूते हैं उनको भी चिपक जाती हैं। लेकिन उस गोबरको जब सुखाकर आग में जलातें हैं तो ओ भस्म होकर पवित्र विभूती में बदल जाती हैं। अपने चिपकनेवाली स्वभाव भी खोजाती है। स्री परमेश्वर, जों वैसेही सफेद रंग मे विराजतें हैं, उस भस्मको अपने सारे शरीर पर लगाकर और भी जगमगातें हैं। हमारा मन भी उसी गोबरकी तरह संकलपौंसे, कामनावोंसे और नीच भावोंसे भरा रहता है। और इस संसार में सबकुछ चिपका लेती है। जब हम उसे वैराग्यसे सुखाकर ध्यानकी आग में जलातें हैं तब ओ मन भी पवित्र हो जाता है। स्री परमेश्वरजीं, जिनको विभूती लगाना बहुतही पसंद है, स्वयं आकर हमारे मन मे पूरा भरजातें हैं। इससे बढकर परम शांती कौनसी हो सकती है? परमेश्वरजी से हम सबको ऐसी शांती प्रदान करनेकी प्रारथना करते हुये, आप सबको शिवरात्री की शुभकामनायें।